30 Jun 2007

अंग्रेजी-हिन्दी वाक्यांश कोश की आवश्यकता

अंग्रेजी-हिन्दी वाक्यांश कोश की आवश्यकता

अंग्रेजी-हिन्दी के अनेक मुद्रित शब्दकोश बाजार में उपलब्ध हैं। इण्टरनेट पर कई ई-शब्दकोश भी उपलब्ध हैं। कई ऑनलाइन-शब्दकोश भी उपलब्ध हैं। इनमें से प्रमुख है http://www.shabdkosh.com/ तथा इसके अलावा अनेक ऑन-लाइन शब्दकोश भी विकसित किए जा रहे हैं जिनके निकट भविष्य में इण्टरनेट पर भी उपलब्ध होने की सम्भावनाएँ हैं।

शास्त्री जे॰सी॰ फिलिप जी ने भी अपने जालस्थल http://www.sarathi.info/ पर अनेक शब्दकोशों की कड़ियाँ (Hyperlinks) उपलब्ध करवाई हैं।

भारत सरकार के वैज्ञानिक एवं तकनीक शब्दावली आयोग द्वारा पिछले कई वर्षों में विभिन्न विषयों की अनेक द्विभाषी/बहुभाषी शब्दावलियों (terminologies) का विकास कर मुद्रित किया गया है। जो प्रकाशन विभाग के विक्रय-केन्द्रों पर उपलब्ध हैं। इन्हें इण्टरनेट पर उपलब्ध करवाने की भी योजना है। किन्तु तकनीकी और प्रशासनिक समस्याओं के कारण इसमें काफी समय लग सकता है।

किन्तु अंग्रजी-हिन्दी अनुवाद करने के दौरान सबसे बड़ी कमी खलती है -- एक वाक्यांश कोश की। क्योंकि सर्वदा शब्द-दर-शब्द अनुवाद सही नहीं हो पाता। शाब्दिक अनुवाद कभी-कभी अर्थ का अनर्थ कर देता है। उदारहण के लिए "Brain Drain" का शाब्दिक अर्थ "दिमागी नाला" होगा, किन्तु इस पद का सही अर्थ "प्रतिभा पलायन" होता है।

अतः पद(शब्द-समूह Term) तथा वाक्यांश (phrase) कोश की नितान्त आवश्यकता है। इसका अभाव बहुत खलता है।

अतः यदि कोई संस्थान या समर्थ व्यक्ति किसी वेबसाइट पर अंग्रेजी-हिन्दी वाक्यांश कोश के निर्माण की दिशा में कोई युक्ति/प्रोग्राम उपलब्ध करा सकें, जहाँ ब्लॉग पाठक या हिन्दी या अंग्रेजी के विद्वान अपने प्रयोग में आनेवाले नए द्विभाषी पद/वाक्यांश जोड़ सकें, तो समग्र विश्व की जनता के लिए अत्यन्त उपयोगी सिद्ध होगा।

ऐसे वाक्यांश कोश की आवश्यकता कम्प्यूटर द्वारा अनुवाद के सॉफ्टवेयरों के विकास में भी अनुभव की गई है। इनकी निर्माण तथा उपलब्ध होने से ऐसे विकास-कार्यों में काफी मदद मिलेगी।

सभी अंग्रेजी तथा हिन्दी के विद्वानों, चिट्ठाकारों, पाठकों से अनुरोध है कि ऐसे वाक्यांशों का संग्रह आरम्भ करें और अपना यथासम्भव योगदान दें।

यदि चाहें तो इस ब्लॉग की टिप्पणी में ऐसे नए पद/वाक्यांश की जानकारियाँ देने की यथासंभव कोशिश कर सकते हैं।

इस दिशा में एक विकि wiki पृष्ठ बनाकर शुरूआत की गई है। सभी अंग्रेजी-हिन्द विद्वानों और पाठकों से अनुरोध है कि यहाँ

http://hi.wiktionary.org/wiki/

अंग्रेजी-हिन्दी वाक्यांश कोश

कड़ी पर नियमित क्लिक करें और नए वाक्यांश जोड़ने तथा इस सूची को यथासम्भव सुधार/संशोधित करके इसे समृद्ध बनाने में अपना अमूल्य सहयोग दें।

12 Jun 2007

ग्लोबल वार्मिंग कम करने हेतु उपग्रहों का प्रयोग

ग्लोबल वार्मिंग कम करने हेतु उपग्रहों का प्रयोग

पृथ्वी पर बढ़ते तापमान (ग्लोबल वार्मिंग) को कम करने हेतु एक अच्छा उपाय सुझाया है-- डेण्टोन, अमेरिका के मि. क्रिश विलिस ने - कि एक विशाल सूर्य ढाल (Sun Shield) बनाकर अन्तरिक्ष में पृथ्वी की भूस्थिर कक्षा में प्रक्षेपित करके स्थापित दी जाए, जो एक उपग्रह की तरह पृथ्वी का चक्कर इस प्रकार लगाती रहे कि हमेशा पृथ्वी और सूर्य के बीच सामने बनी रहे और विशेषकर भूमध्यसागरीय क्षेत्र से सूर्य के 3 प्रतिशत प्रकाश को अन्तरिक्ष में ही परावर्तित कर दे और धरती पर न पहुँचने दे। इससे धरती के तापमान में 5-6 प्रतिशत कमी आ सकती है।

उन्होंने बताया है कि इतनी बड़ी परावर्तक तश्तरी/शील्ड को पृथ्वी से प्रक्षेपित करना काफी कठिन और खर्चीला होने के कारण इसे चाँद पर एक अर्थ-स्टेशन बनाकर वहाँ से प्रक्षेपित करने की सलाह दी है तथा इसकी व्यापक विधि भी अपने ऊपर संकेतित वेबपृष्ठ पर बतलाई है।

उन्होंने इस पर आनेवाली लागत को अमेरिकी सरकार के एक वर्ष के बजट का सिर्फ 3 प्रतिशत बताया है। परन्तु बिल्ली के गले में घण्टी कौन बाँधे? शायद भविष्य में उनके सुझाव को कार्यान्वित करने के लिए कोई आगे आए- इसकी प्रतीक्षा है!लेकिन इसमें भी कुछ लोगों को आशंका है कि यह सूर्य के मानव के लिए हितकारी मुख्य प्रकाश को कहीं अवरुद्ध कर सकती है और बाहरी हानिकारक (लपटों वाले) हानिकारक प्रकाश को धरती पर अधिक फैलने का खतरा बढ़ा सकती है। प्रश्न उठता है कि इस ढालरूपी उपग्रह से सूर्य हमेशा ग्रहणग्रस्त हुआ क्या नहीं माना जाएगा?

कुछ लोगों ने उन्हें सुझाव दिया है कि ऐसे परावर्तक उपग्रह-तश्तरी का दोहरा उपयोग भी किया जा सकता है। सर्दियों के दिनों में इस उपग्रह-ढाल को उलटाकर इस प्रकार प्रतिस्थापित किया जा सकता है, ताकि अधिकाधिक धूप पृथ्वी की ओर परावर्तित कर सके, विशेषकर अधिक ठण्डे क्षेत्रों की ओर। ताकि लोगों को ठिठुरती ठण्ड से कुछ राहत मिल सके।

आधुनिक युग में उपग्रहों का प्रक्षेपण करके विविध उपयोग किया जा रहा है। हर महीने एक-दो नए उपग्रह विभिन्न राष्ट्रों द्वारा प्रक्षेपित किए जा रहे है। संचार, मौसम, अनुसन्धान, भूगोल, जलवायु-प्रबोधन तक ही सीमित नहीं रहे हैं, इनके उपयोग, बल्कि जासूसी, युद्ध के लिए भी कई उपग्रह अन्तरिक्ष में प्रस्तुत हैं। ईराक के साथ युद्ध में ऐसे जासूसी उपग्रहों का उपयोग करके ही अमेरिका ने सद्दाम हुसैन को नेस्तनाबूत करने में सफलता पाई थी।

लेकिन ऐसे प्रकाश परावर्तक-तश्तरीवाले उपग्रहों का विनाशकारी उपयोग भी किए जाने की आशंकाएँ उपजती है। सर्य के प्रकाश को सागर-जल पर परावर्तित तथा संकेन्द्रित करके पानी में उबाल पैदाकर स्थल विशेष पर निम्नदाब सृजित करके चक्रवात व तूफान भी छेड़े जा सकते हैं। किसी स्थल विशेष पर अत्यधिक ताप पैदा करके अग्निकाण्ड किए जा सकते हैं। जंगलों में आग लगाई जा सकती है।

उपग्रहों के प्रयोग द्वारा 'गूगल अर्थ' कितने सटीक मानचित्र इण्टरनेट के माध्यम से प्रदान कर पा रहा है, इस तथ्य से आज बच्चे भी परिचित हैं। ये मानचित्र आज आम आदमी तक उपलब्ध हो रहे हैं। उपग्रहों में लगे शक्तिशाली एक्स-रे कैमरों से अब पृथ्वी के गर्भ में छिपी खानों के खनिज भण्डारों का भी पता लगाया जाने लगा है।

कुछ वर्षों पहले सूर्य के प्रकाश को धरती की ओर परावर्तित करनेवाले एल्यूमिनियम से बने एक लघु चन्द्रमा जैसे उपग्रह का प्रक्षेपण करके सफल प्रयोग करके देखा जा चुका है, जो रात में भी एक क्षेत्र विशेष को रोशनी से प्रकाशित करता था।

परन्तु अतः यदि ग्लोबल वार्मिंग कम करने में ऐसे ढाल रूपी उपग्रहों का प्रयोग किया जा सके तो यह एक रचनात्मक कदम होगा और इसे एक बहुत अच्छा जन-हितकारी उपाय माना जाएगा।

11 Jun 2007

सूरज पर दाग - बढ़ती गर्मी का कारण

सूरज पर दाग - बढ़ती गर्मी का कारण

चाँद पर दाग हैं, सभी इसे देख लेते हैं। चाँद पर दाग विषय पर अनेक कवियों की कलम चल चुकी है। दाग तो सूर्य पर भी होते हैं। चाँद के दाग तो सभी देख लेते हैं, किन्तु सूरज के दाग कौन देखे? जो सूरज के दाग देखने जाएगा, उसकी आँखें फूट सकती है उसके प्रखर व अनन्त प्रकाश से। शायद इसीलिए कहा गया है कि "बड़ों की गलतियाँ नहीं देखी जाती।"

आजतक दूरदर्शन चैनल पर एक समाचार में बताया गया कि अब वैज्ञानिकों ने आधुनिक वेधशालाओं में देखने पर पाया है कि आजकल सूरज पर दो बड़े काले धब्बे दिखाई दे रहे हैं। चेतावनी भी दी गई है कोई इन धब्बों के लिए सूरज की ओर झाँकने का भी प्रयास नहीं करे। सूरज की ओर नंगी आखों से कदापि नहीं देखना चाहिए। उगते हुए बाल-सूर्य को भले की कुछ मिनट नंगी आँखों से देखा जा सकता है। किन्तु जब सूरज की लालिमा कम होने लगे तो और सूरज की ओर निहारना नहीं चाहिए।

वैज्ञानिकगण आजकल सूरज पर दिखाई दे रहे इन काले धब्बों को पृथ्वी की गर्मी बढ़ने (ग्लोबल वार्मिंग) का कारण भी मान रहे हैं। आँकड़ों के आधार पर वे बताते हैं कि जिस वर्ष सूरज पर कोई धब्बा नहीं दिखाई दिया, उस वर्ष बहुत कड़ाके की ठण्ड पड़ी थी। सूरज पर निरन्तर होते रहनेवाले परमाणुओं के विखण्डन तथा संलयन की प्रक्रिया के कारण अनन्त ऊर्जा उत्पन्न होती है और ये काले धब्बे उसके ईँधन भण्डार भो हो सकते हैं या कोई बड़े गड्ढे भी हो सकते हैं। सूर्य से जो प्रकाश धरती पर पहुँचता है, उसे पृथ्वी के चारो ओर स्थित ओजोन आयाम छानकर धरती तक पहुँचाता है। हानिकारक तत्व छिटक कर पृथ्वी के दोनों ध्रुवों की ओर विसर्जित हो जाते हैं।

जिस प्रकार सूर्यग्रहण के वक्त सूर्य का प्रकाश हानिकारक माना जाता है। उसी प्रकार काले धब्बों के प्रकट होने के दौरान भी सूर्य का प्रकाश हानिकारक माना जाता है। इसे समझाने का सरल तरीका निम्नवत् है:

जैसे- लकड़ी के चूल्हे पर जब रोटी पकाई जाती है तो रोटी को पहले तवे पर आधा सेक कर उतार लिया जाता है, और फिर रोटी को दहकते कोयले/अंगारों पर रखकर उलट-पलट कर सेंका जाता है। वह रोटी स्वादिष्ट और स्वास्थ्यकर होती है। यदि रोटी को लकड़ी जलने पर पैदा होनेवाली आग की लपटों में सेंका जाए तो रोटी कड़ुई(खारी) हो जाती है तथा कुछ जहरीली भी हो सकती है, कुछ काली भी पड़ सकती है। इसी प्रकार सूर्यग्रहण के वक्त सूर्य का मुख्य (अँगारों जैसा) प्रकाश छिप जाता है, बाहरी प्रकाश जो लपटों जैसा होता है, वही हम तक पहुँचता है, जिसमें वैसे ही कुछ जहरीले तत्व पाए जाते हैं। इसलिए सूर्यग्रहण के समय पेट खाली रखने की सलाह दी जाती है।

अतः काले धब्बे दिखाई पड़ने के दौरान सूर्य का प्रकाश कुछ कटु होता है जो आर्द्रता, गर्मी तथा उमस बढ़ाने वाला होता है। इस दौरान कई स्थानों पर भयंकर चक्रवात, ओलावृष्टि तथा अम्लवर्षा होने के भी उदाहरण मौसम विभाग के आँकड़ों में पाए जाते हैं।

यदि ग्लोबल वार्मिंग इन्हीं सौर कारणों से बढ़ रही है तो मानव के वश में क्या है? मानव इसका क्या उपाय कर सकता है?

5 Jun 2007

पर्यावरण दिवस.... कुछ विशेष उपाय...

पर्यावरण संरक्षण हेतु कुछ विशेष उपाय....

आज विश्व पर्यावरण दिवस के अवसर पर अखबारों, वेबपृष्ठों में काफी सामग्री प्रकाशित हुई है। अनेकों जनसभाओं में भाषण दिए गए हैं। कुछ संस्थाओं द्वारा पौधे रोप कर रस्म निभा ली गई है। किन्तु वस्तुतः ठोस कदम उठानेवाले बहुत कम ही हैं।

पर्यावरण की हानि, वनों की अन्धाधुन्ध कटाई, प्रदूषण, ग्लोबल वार्मिंग, जलवायु-परिवर्तन के दुष्परिणामों से उपजने वाले विनाशकारी संकटों की झलकियाँ महाप्रलय के स्पष्ट संकेत दे रही हैं, फिर भी लोग 'कोमा' में पड़े व्यक्ति की तरह अचेत या निश्चिन्त हैं। धरती पर बढ़ते जा रहे तापमान के कारण कई क्षेत्रों की जलवायु बदलने लगी है। कर्करेखा एवं विषुवत् रेखा के मध्य के क्षेत्रों में गर्मियों की ऋतु में दिन में दोपहर बाद तक भारी गर्मी और चौथे प्रहर तेज आँधी तूफान और उसके बाद भारी वर्षा तथा ओले गिरने की घटनाएँ आए दिन होने लगी हैं। रोजाना आँधी तूफान में अनेकों पेड़ तथा बिजली के खम्भे उखड़ते जाते हैं, घण्टों बिजली गायब रहती है। और फिर अगले दिन और तेज गर्मी पड़ती है। सुलतानपुर के पास एक क्विंटल की बर्फ की सिल्ली 'ओलावृष्टि' में गिरने का भी समाचार अखबारों में छपा है। मुख्यतः गर्मियों के मौसम में ही होनेवाली वर्षा के दौरान ओले गिरते हैं।

मनुष्य को अपना भोजन, रसोई पकाने के लिए लकड़ी, औषधि, वस्त्र, मकान-निर्माण सामग्री आदि सबकुछ वृक्षों से ही मिलता है। अन्त में मरने पर शव को जलाने के लिए भी लगभग 400 किलोग्राम लकड़ी की जरूरत पड़ती है। अतः औसतन एक व्यक्ति अपने जीवनकाल में 400 टन वनस्पतियों (पेड़-पौधे-लकड़ी) आदि का उपभोग कर डालता है।

किन्तु क्या हरेक व्यक्ति अपने जीवनकाल में 400 पेड़ लगाकर उनके बड़े होने तक पालन-पोषण, सुरक्षा, सिंचाई आदि भी करता है? अतः वनों की हानि होना स्वाभाविक है।

पर्यावरण-संरक्षण हेतु कुछ कठोर कदम उठाए जाने की नितान्त आवश्यकता है।

1. वृक्षारोपण हेतु नियमों में सुधार की जरूरत :

ग्लोबल वार्मिंग को रोकने के लिए सिर्फ पेड़-पौधे की सकारात्मक भूमिका निभाते हैं, जो सूर्य की किरणों को सोखकर अपना भोजन बनाते हैं। कार्बन-डाई-ऑक्साइड को सोखकर ऑक्सीजन छोड़ते हैं। अतः वनीकरण एवं वृक्षारोपण नियमों में निम्नवत् कुछ कठोर सुधार लाने की नितान्त आवश्यकता है।

-- इतने व्यापक परिमाण में वृक्ष रोपे जाएँ, कहीं भी धरती का कोई भी टुकड़ा खाली दिखाई न दे।

-- कोई भी व्यक्ति कहीं भी खाली पड़ी जमीन में पेड़ लगा सके, ऐसा अधिकार हर व्यक्ति को हो, उसे रोकने का अधिकार किसी को भी न हो।

-- मकान/सड़क/रेलमार्ग/कारखाने आदि के निर्माण के लिए जमीन को खाली करने की जरूरत पड़ने पर पेड़ काटने की अनुमति तभी दी जाए, जबकि पहले उतने नए पेड़ लगा दिए जा चुके हों, जितने पत्ते उस काटेजानेवाले पेड़ में हैं। क्योंकि बडे पेड़ का एक पत्ता जितनी गर्मी सोखता है, नया रोपा गया सम्पूर्ण पौधा भी उतनी गर्मी नहीं सोख पाता।


वृक्षों का प्रतिरोपण

-- जहाँ भी सड़कें आदि चौड़ी/दोहरी करने के लिए, नई सड़कों/रेलमार्गों/भवनों आदि के निर्माण के लिए वहाँ उगे पेड़ को काटने की जरूरत पड़े, वहाँ उस पेड़ को काटने के लिए अनुमति कदापि न दी जाए। बल्कि दूसरे स्थान पर बड़ा गड्ढा खोदा जाए, उस गड्ढे में पर्याप्त खाद डाली जाए, फिर बुलडोजरों के सहारे उस पेड़ को जड़-मिट्टी सहित सावधानी से उखाड़कर वहाँ रोपा जाए, अर्थात् स्थानान्तरित/प्रतिरोपित किया जाए। तथा उस पेड़ से नए पत्ते व डालियाँ निकलने तक नियमित रूप से पर्याप्त जल-सिंचाई व्यवस्था की जाए।

ऐसे कार्य का श्रेष्ठ उदाहरण है यह है कि दिल्ली में 1980 में हुए एशियाई खेलों के लिए खेलगाँव के निर्माण के दौरान भूतपूर्व प्रधानमंत्री स्व. श्रीमती इन्दिरा गान्धी जी ने बड़े बड़े पेड़ ऐसे ही रातों रात प्रतिरोपण करवा कर हरी-भरी विशाल कॉलोनी का निर्माण करवाकर आदर्श स्थापित किया था।

जो वृक्ष ज्यादा विशाल हों, उनकी कुछ डालियाँ काट कर मुख्य जड़ एवं तने का प्रतिरोपण किया जा सकता है। कुछ दिन की सिंचाई के बाद इनमें नई कोंपलें, डालियाँ निकलकर तेजी से फैलेंगी, जो नए रोपे गए पौधे की तुलना में कई गुना तेजी से फैलेंगी और गर्मी सोखेंगी। नए पौधे को उस उम्र तक पहुँच कर बड़ा होने और पर्याप्त छाया देने, गर्मी सोखने, फलने फूलने में कई वर्ष लग सकते हैं। जबकि प्रतिरोपित वृक्ष एक-दो महीने में ही फिर से हरा-भरा हो सकता है।

अतः जंगलों में भी जहाँ लकड़ी के लिए पेड़ों की कटाई हो, वहाँ उसकी जड़ को कदापि न उखाड़ा जाए, बल्कि जड़ एवं लगभग 4-5 फुट ऊँचे तने को छोड़ दिया जाए, उस पर गोबर, खाद, रसायनों के लेप द्वारा नए डालियों और कोंपलों को उगाया जाए और पर्याप्त सिंचाई द्वारा तेजी से विकास किया जाए।

इस प्रकार लकड़ी की जरूरत के लिए जहाँ आवश्यक हो पेड़ों की कटाई केवल वर्षा ऋतु में की जानी चाहिए, ताकि कटे पेड़ से नए कोंपलें व डालियाँ निकल कर विकसित हो सके।

जंगलों में जिन पेड़ों को काटने के लिए चिह्नित किया जाए, उसकी जड़ से 3-4 फुट ऊपर मुख्य तने में विभिन्न खाद तथा रसायनों का प्रयोग करके पहले नए कोंपलें, डालियाँ उगाई जाए। उन नई उगी कोंपलों व डालियों को सुरक्षित रखते हुए मुख्य तने को कुछ ऊपर के काटा जाना चाहिए।

भगवान जगन्नाथ जी की मूर्तियों के निर्माण के लिए भी जिस नीम के वृक्ष का चयन होता है, कुछ दिन पहले से विधिवत् उसकी पूजा-अर्चना की जाती है, उसके तने से नई कोंपलें उगाईं जाती हैं, उसके बाद ही शुभ मुहूर्त्त में मुख्य तने को ऊपर से काटा जाता है।


-- जहाँ भी दोहरी सड़कें हों, आने व जानेवाली अलग अलग सड़कों के बीच में नारियल, देवदारू जैसे सीधे खड़े होनेवाले कम चौड़े अधिक ऊँचे पेड़ हर 10 फुट की दूरी पर लगाना अनिवार्य किया जाए।

-- चोरी से पेड़ काट ले जानेवालों को कठोर दण्ड दिया जाए। उन्हें सश्रम कारावास की सजा में उनसे बंजर भूमि में पेड़ उगवाने तथा नियमित सिंचाई करने का ही काम लिया जाए।

-- शहरों में पक्के मकानों, कंक्रीट/एज्बेस्टस/टाइल की छत वाले मकानों, बहुमंजिली इमारतों की छतों पर बड़े गमलों में और खिड़कियों, बालकोनियों पर छोटे गमलों में उगाकर लताएँ आच्छादित करना विभिन्न नगरपालिकाओं, नगरनिगमों, आवास-विकास-बोर्ड द्वारा अनिवार्य घोषित किया जाए। बहुमंजिली इमारतों पर लताओं को गमलों में लगाकर खिड़कियों/बालकोनी में रखकर नीचे लटककर स्वतः फैलने दिया जा सकता है, इन्हें ऊपर चढ़ाने के लिए किसी सहारे के लगाने के जरूरत नहीं है। ऐसे गमलों चौकोर (कम ऊँचे अधिक चौड़े) होने चाहिए, ताकि आँधी-तूफान के वक्त लुढ़ककर गिर न जाएँ।


2. अपशिष्ट जल (Swerage) का पुनःउपयोग :


-- शहरों से अपशिष्ट जल (Swerage) के उपचार हेतु अनिवार्य व्यवस्थाएँ की जाए। संयंत्रों द्वारा छाना हुआ/शुद्ध किया हुआ पानी विभिन्न खाली पड़ी जमीनों में वृक्षों की सिंचाई के लिए उपयोग किया जाए। इससे दोहरी समस्या का समाधान होगा। एक ओर मलजल के निपटान में सहयोग मिलेगा, दूसरी ओर व्यापक वनीकरण में सहयोग मिलेगा।

पुरी (जगन्नाथ पुरी, ओड़िशा) नगर के समग्र मल-जल को समुद्र में नहीं छोड़ा जाता, बल्कि एक बड़े तालाब में भण्डारित करके मलजल उपचार संयंत्र से विशोधित किया जाता है। तथा इस पानी को समुद्र किनारे "झाऊँ" वक्षों की 'हरित पट्टी' में सिंचाई में उपयोग किया जाता है। इससे समुद्र तट सुरम्य तथा गर्मीरहित शीतल बना रहता है। भारत के समग्र समुद्रतटों में नहानेयोग्य सबसे अधिक शुद्ध पानी पुरी के समुद्र का ही माना जा चुका है। अन्य समुद्रतटीय नगरों को भी इसका अनुकरण कर सागर को 'नर्क' बनाने से बचाना चाहिए।


शहरों के गन्दे नालों नदियों में छोड़ने पर तत्काल प्रतिबन्ध लगाया जाए। नदी में निष्कासित होनेवाले नालों को तत्काल बन्द करके शहर के बाहर निचली जमीन में तालाब खोदकर उसमें उस गन्दगी को संग्रहीत किया जाए तथा इसके जल को विशोधित कर वृक्षारोपण एवं वनीकरण में उपयोग किया जाए। मल को खाद बनाने हेतु उपयोग किया जाना चाहिए और वनीकरण में इसका उपयोग किया जाना चाहिए।

-- हर राष्ट्र के कुल बजट का 2 प्रतिशत वृक्षारोपण तथा टैंकरों/पाइपलाइन/वाष्पीकरण/कृत्रिम-वर्षा के द्वारा नए वृक्षों में पानी डालकर सिचाई करने की व्यवस्था में खर्च किया जाए।

-- बेकार श्रमिकों/ रोजगार कार्यालयों में बेकार युवाओं को कुछ निर्धारित पारिश्रमिक पर अनिवार्य रूप से वृक्षारोपण के कार्य में लगाया जाए। अधिकाधिक पेड़ लगाने और उनके बड़े होने तक देखभाल करनेवाले युवाओं को सरकारी नौकरियों में प्राथमिकता दी जाए।

-- चाहे सरकारी भूमि हो, या निजी भूमि हो, जो भी भूमि पेड़-पौधों या फसल से रहित दिखाई दे, बंजर जैसी दिखाई दे, उस पर अतरिक्त कर(tax) प्रभार लगाकर कठोरता से वसूल किया जाए। इस प्रकार कर-वसूली से हुई आय में से उन व्यक्तियों को पुरस्कार/पारिश्रमिक दिए जाएँ जो अपनी समग्र जमीन को हरा-भरा रखते हों।


3. कूड़ा-करकट को जलाना प्रतिबन्धित घोषित किया जाए तथा पुनःउपयोग की व्यवस्था की जाए:

शहरों में देखा जाता है कि नगरपालिका के कर्मचारी ही कूड़ा-करकट ढोकर ले जाने हेतु पर्याप्त गाड़ियों आदि की व्यवस्था के अभाव में हो या आलस्यवश हो गलियों में इकट्ठा करके आग लगाकर भाग जाते हैं, जो घण्टों तक सुलगता रहता है, भयंकर धुआँ और दुर्गन्ध फैलाता है। इससे वातावरण में गर्मी बढ़ती है, वायु-प्रदूषण बढ़ता है, बीमारियाँ फैलती हैं। विशेषकर प्लास्टिक के जलने के उपजनेवाला धुआँ जहरीला होता है तथा सैंकड़ों लाइलाज व जानलेवा बीमारियों को फैलाता है।

सिंगापुर, न्यूयार्क, मुम्बई, बेंगलोर आदि कई शहरों में कूड़ा-करकट जलाने पर प्रतिबन्ध लगा हुआ है। अतः संसार के हर स्थान पर कूड़ा-करकट जलाने पर ऐसे ही प्रतिबन्ध अनिवार्य रूप से लगाए जाने चाहिए। संयुक्त राष्ट्र संघ की सम्बन्धित संस्थाओं को कठोर आदेश जारी करने चाहिए।

कूड़ा-करकट का पुनःउपयोग करने के लिए विभिन्न व्यवस्थाओं में खाद बनाने को प्राथमिकता दी जानी चाहिए। क्योंकि कूड़ा-करकट में 80% कचरा वनस्पति-जन्य होता है। कूड़े से निकले प्लास्टिक को तो अनिवार्य रूप से पुनचक्रित कर फिर से काम में लगाना अत्यन्त आवश्यक है। कूड़े में मिली बेकार प्लास्टिक की पतली थैलियों को कोलतार में मिलाकर सड़क निर्माण के काम लगाना एक अच्छा उपाय है।

-- कूड़ा-करकट को पुनःचक्रित (recycle) करने के लिए संस्थाओँ तथा निजी उद्यमियों को आकर्षित करने के लिए सरकारी स्तर पर व्यापक प्रोत्साहन, तकनीकी तथा आर्थिक सहायता देने की नई योजनाओं के प्रवर्तन और इनको लागू करने की नितान्त आवश्यकता है।

-- कूड़ा-करकट को जलाकर बिजली बनाने का काम करना एक घटिया उपाय है। इससे प्रदूषण बढ़ेगा, ग्लोबल वार्मिंग बढ़ेगी। अतः यह अन्तिम उपाय के रूप में ही किया जाना चाहिए। ऐसे कूड़े को पहले सोलर कन्सेन्ट्रेटर द्वारा पर्याप्त सुखाने के बाद में भट्ठियों में बड़े इण्डस्ट्रियल फैन से पर्याप्त हवा पम्प करते हुए जलाना चाहिए ताकि कम से कम धुआँ व कार्बन-डाई-ऑक्साइड निष्कासित हो और अधिकतम ताप उपलब्ध हो तथा बॉयलर पूरी क्षमता से चल सकें।

4. विद्युत पर निर्भरता कम की जाए :

आज संसार के अधिकांश लोग बिजली (Electricity) के गुलाम हो चुके हैं। विशेषकर शहरों में तो लोगों को बिना बिजली के एक मिनट रहना भी दूभर लगता है। प्रकाश(वाल्व, ट्यूबलाइट..) हवा (पंखे, कूल, ए.सी.), पानी (मोटर पम्प के द्वारा), भोजन (हीटर द्वारा), मनोरंजन (दूरदर्शन चैनल के कार्यक्रम), संचार, कम्प्यूटर सब कुछ विद्युत पर ही निर्भर होता है।

बिजली की मांग दिनों-दिन बढ़ती जा रही है। नदी-बाँधों से पन-बिजली और पवनचक्कियों से सृजित बिजली या सौर ऊर्जा से सृजित विद्युत जनता की मांग को पूरा नहीं कर पाती। इसलिए कोयला जलाकर या गैस या पेट्रोलियम तेल जलाकर बड़े ब़ड़े ताप विद्युत सृजन कारखानों से बिजली सृजित कर वितरित की जाती है, जो प्राकृतिक सम्पदा की भारी खपत साथ साथ पर्यावरण को भी नुकसान पहुँचाती है।

अक्सर देखा जाता है कि शहरों में लोग टी.वी. के सामने ड्राईंग रुम सीरियल, फिल्म या समाचार देखने ही सारा समय बिता देते हैं। पड़ोसी का नाम तक मालूम करने की कोशिश नहीं। बच्चे भी पढ़ाई भूलकर टी.वी. पर कार्टून आदि देखने में काफी समय बिताते हैं। हाँ, जब कभी विद्युत-प्रवाह कट जाता है, बिजली चली जाती है, तभी लोग घरों से बाहर बालकोनी या गलियों में निकलते हैं, पड़ोसियों से बात करते हैं या छत पर जाकर अड़ोस-पड़ोस में निहारते हैं।

अतः लोगों को बिना बिजली के कुछ दशकों पहले जैसा प्राकृतिक जीवन यापन करने की याद दिलाने तथा वैसा ही अभ्यास बनाए रखने के लिए हर स्थानों पर रोजाना एक घण्टे सुबह (कार्यालय समय के पहले) तथा शाम को (कार्यालय समय के बाद) बिजली कटौती अनिवार्य रूप से की जानी चाहिए। ताकि लोग घरों से बाहर निकलने को मजबूर हों और प्राकृतिक जीवन बिताने का कुछ अभ्यास करें।


5. विश्व पर्यावरण दिवस एक धार्मिक पर्व के रूप में मनाया जाए :

आज भी विश्व की आधी जनसंख्या धार्मिक आस्थावादी है। धर्म के लिए बहुत कुछ न्यौछावर करती है। विभिन्न धर्मों में वृक्षों की पूजा करने का विधान रहा है। हिन्दू धर्म में तो तुलसी, बरगद, पीपल, केले, आम, शमी आदि वृक्षों/पौधों की पूजा की जाती है। कई प्रकार की ग्रह-दशाओं से, संकटों से मुक्ति के लिए बरगद एवं पीपल के पेड़ लगाने तथा रोज सींचने की सलाह ज्योतिषियों/पण्डितों द्वारा दी जाती है।

ऋग्वेद में कहा गया है :

यत ते भूमे विश्‍वनामि क्षिप्रं तदपि रोहतु।

मा ते मर्म विमृग्वरि मा ते हृदयमर्पिपम।।

इसका अर्थ कुछ यूँ है :

हे धरती माता, जब मैं भोजन, औषधि आदि के लिए वनस्पतियों को काटता हूँ, तुम्हारे तन को खोदता हूँ, तो तुम्हारे घाव जल्दी भरें, अनेक गुना वनस्पतियाँ बढ़ें।


मत्स्य पुराण में कहा गया है:

“पानी के अभाव के स्थान पर जो व्यक्ति एक कुँवा खुदवाता है, वह उतने वर्षों तक स्वर्ग में निवास करता है, जब तक कि उस कुँए में पानी की बूँदें रहें। एक तालाब बनवाने से ऐसे दस कुँए खुदवाने के बराबर फल मिलता है और एक गुणवान पुत्र को जन्म देकर पोषण करने से ऐसे दस तालाब खुदवाने के बराबर फल मिलता है। और दस पुत्रों का पोषण करने के बराबर फल मिलता है एक वृक्ष को लगाकर उसको पालने पर।" और ऐसे दस वृक्षों को लगाने/पालने के बराबर फल मिलता है, एक पीपल का पेड़ लगाने/पालने पर।

क्योंकि पीपल के वृक्ष की महिमा तो स्वयं भगवान ने श्रीमद्भगवद्गीता में की है।

"ऊर्ध्वमूलमधःशाखमश्वत्थं प्राहुरव्ययम्" गीता-15.1

"अश्वत्थः सर्ववृक्षाणां देवर्षीणां न नारदः", गीता- 10.26


वैज्ञानिकों ने भी अनेक शोध के बाद पाया है कि एकमात्र पीपल का वृक्ष ही ऐसा पेड़ है जो रात को भी कार्बन-डाई-ऑक्साइड शोखकर ऑक्सीजन उत्सर्जित करता है। अन्य सभी पेड़ केवल दिन के समय धूप के प्रकाश को संश्लेषित कर कार्बन-डाई-ऑक्साइड अवशोषित कर अपना भोजन बनाने में उपयोग कर पाते हैं।

तुलसीदास जी ने भी कहा है :

उत्तम खेती, मध्यम वाणी। अधम चाकरी, भीख निदानी।।

अर्थात् सबसे उत्तम कार्य कृषि कार्य है, क्योंकि एक बीज बोयें तो अनेक/लाखों/करोड़ों बीज वापस मिल सकते हैं। मध्यम कार्य वाणिज्य या व्यापार है, जो अच्छा लाभ देता है। अधम कार्य नौकरी करना है। सबसे निकृष्ट कार्य है भीख माँगना।

अतः हर व्यक्ति को प्रतिदिन कुछ समय निकालकर कृषि/बागवानी के लिए अवश्य लगाना चाहिए।

अतः धर्मनेताओं, धर्मगुरुओं, शंकराचार्यों, स्वामियों, संन्यासियों आदि को चाहिए कि ऐसी पौराणिक मान्यताओं को फिर से प्रचलित/प्रचारित/प्रसारित करें और "सबसे बड़ा पुण्य" वृक्षारोपण एवं प्रदूषण-नियन्त्रण को बताते हुए कुछ व्याख्यान दें। समस्त पूजा-पाठ, योग, जप, तप, दान से बढ़कर कार्य वृक्षों को लगाने, पालपोस कर बड़ा करने, सींचने से होगा, यही प्राचीन धार्मिक उपदेश फिर से प्रचारित करने में जी-जान से लग जाएँ। वायु प्रदूषण सबसे बड़ा पाप है, इसका व्यापक प्रचार करें और लोगों को पर्यावरण को शुद्ध रखने को प्रेरित करें।

सभी पाठक बन्धुओं से अपील है कि वे इस लेख की जितनी चाहें कापियाँ कर सकते हैं, जिसको चाहें पढ़ने के लिए आमन्त्रित कर सकते हैं। चाहें तो नकल करके अपने नाम भी प्रकाशित कर सकते हैं। वे चाहें तो इसे अन्य भाषाओं में अनुदित कर सकते हैं। यदि वे इसे सरकारों, धार्मिक संस्थाओं, संयुक्त राष्ट्र संघ - पर्यावरण संस्थान, जी-8 सम्मेलन के पदाधिकारियों .... विभिन्न सम्बन्धित संस्थानों को प्रेषित करें, कुछ कार्यवाही करवाएँ तो वे भी परम पुण्य के अधिकारी होंगे।

यह लेख मुक्त स्रोत के अन्तर्गत समर्पित हैं। कोई कॉपीराइट नहीं है। इसकी नकल करने का पूरा अधिकार दिया जाता है। पाठक इसकी सामग्री को अपने ब्लाग में भी डाल सकते हैं। चाहें तो इसकी कड़ी भी दे सकते हैं।

जो पाठक पर्यावरण संरक्षण और प्रदूषण नियन्त्रण के नए नए व्यावहारिक उपाय टिप्पणी में सुझायेंगे, वे इस परम पुण्यकार्य का विशेष फल पाने के हकदार होंगे।